राहु केतु का प्रभाव आपके जीवन में क्या पद्दा है।

जानिए कुंडली में कैसे राहु-केतु डालते हैं आपके जीवन में असर. ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा आत्मा एवं मन के कारक माने गए हैं। वहीं बुध ग्रह को ज्ञान, सोच एवं चिंतन का कारक माना जाता है। इन्हीं ग्रहों के शुभ-अशुभ प्रभाव का असर जातक के व्यवहार एवं निर्णय पर होता है। राशि चक्र की बारह राशियां, आभामंडल के नौ ग्रह और 27 नक्षत्रों के फलस्वरूप जातक के कार्यों पर इनके प्रभाव का फल स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। जातक के वर्तमान एवं भविष्य के सभी निर्णय इन ग्रह-नक्षत्रों से प्रभावित होते हैं। यथा- सूर्य से मस्तक, वाणी, प्रेम, उद्वेग तथा संवेग चंद्र (अर्थात् मन) से नियंत्रित होते हैं। ज्योतिषीय गणना में बारह राशियों के साथ बारह भावों का विशेष स्थान सुख-दुख, संतान आजीविका आदि का विचार इन्हीं भावों से किया जाता है। प्रथम भाव (तनु) लग्न, चतुर्थ भाव सुख, इस तरह कुंडली में बारह भावों का एक निश्चित स्थान है। जातक की जन्म कुंडली में अगर लग्नेश कमजोर है, तो जातक का व्यक्तित्व नकारात्मक एवं निराशाजनक होगा। इस तरह कुंडली के एक-एक भाव से कई प्रकार की गणना की जाती है। चंद्रमा मन का कारक है। अगर इस पर पाप ग्रह का प्रभाव है, तो जातक प्रसन्नचित नहीं रह पाता है। जन्म कुंडली का चौथा घर सुख स्थान है। इस भाव में पाप ग्रह, मंगल, शनि, राहु आदि होते हैं, तो जातक वांछित सुख से प्राय: वंचित होते हैं। चतुर्थ भाव के कारक ग्रह चंद्रमा और बुध हैं। यदि चंद्रमा और बुध भी पाप ग्रह के प्रभाव में हों, तो जातक अत्यधिक तनाव ग्रस्त, भावुक होता है। निराशावादी दृष्टिकोण, सोचने की तार्किक शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के फलस्वरूप अवसाद ग्रस्त होने की उम्मीद बढ़ जाती है। जातक का पंचम भाव पुत्र, विद्या, बुद्धि, यंत्र, मंत्र, तन्त्र, प्रबंध, राज, चिंता आदि को दर्शाता है। यदि जातक के इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो, तो जातक के अवसाद ग्रस्त होने की आशंका अत्यधिक बढ़ जाती है। छठा, आठवां और बारहवां भाव इन्हें त्रिक भी कहते हैं। इससे चिंता, उधारी, तनाव, दुश्मन और मृत्यु आदि का विचार किया जाता है। निराशा, अवसाद एवं आत्महत्या में इन भावों का इनके स्वामी का महत्वपूर्ण योगदान है। लग्न का स्वामी द्वितीय भाव में तृतीय और एकादश के स्वामी के साथ और अष्टम भाव का स्वामी अष्टम में हो, तो जातक के आत्महत्या कर लेने की आशंका बढ़ जाती है। ‘सेजोफ्रेनिया’ में चतुर्थ भाव की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। शनि लग्न में सूर्य बारहवें घर में हो, तो मानसिक आघात की संभावना अधिक होती है। कुंडली का तीसरा भाव जातक को शक्ति तथा साहस देता है। यदि यह कमजोर भाव जातक, नकारात्मक होगा या मृत्यु कारक ग्रहों से संबंध होगा, तो जातक के आत्महत्या कर लेने की आशंका बढ़ जाती है। ग्रहों की स्थित गोचर में, महादशा-अंतर दशा तथा प्रत्युत्तर दशा में विचार करना आवश्यक है, क्योंकि ग्रहों का प्रभाव इन्हीं की दशाओं में ही प्रभावी होता है। कुंडली में इस तरह के बुरे प्रभावों को दूर करने के सरल उपाय भी करना चाहिए। यथा यदि सूर्य कुंडली में प्रतिकूल हो, तो इसके लिए प्रात: सूर्योदय के समय लाल फूल सूर्य को अर्पित करते हुए दीपक से सूर्य की पूजा व आरती करें। सूर्य के वैदिक मंत्रों द्वारा किसी ज्ञानी से हवन करवाएं और पिता की सेवा करें। सूर्य की आरती व पूजा प्रतिदिन संभव न हो, तो रविवार को अवश्य करें। चंद्रमा हेतु चांदी के गिलास में पानी पिएं। यदि चांदी का गिलास उपलब्ध न हो, तो किसी गिलास में चांदी की अंगूठी या चांदी का एक टुकड़ा डालकर प्रतिदिन उस पानी को पिएं। सभी प्रतिकूल ग्रहों के अनुकूलता के सरल उपाय करने पर अपेक्षित परिणाम अवश्य मिलते हैं। जीवन अमूल्य है। इसमें तनाव अवसाद का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

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